
संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार का दिन पूरी तरह वंदे मातरम् की गूंज से भरा रहा। राज्यसभा में विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कहा— “वंदे मातरम एक गीत नहीं, बल्कि आजादी, चेतना और मां भारती के प्रति समर्पण का शक्तिशाली मंत्र है।”
उन्होंने कहा कि इसे किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह भारत की पहचान और गौरव का हिस्सा है।
“जिन्हें समझ नहीं आ रहा… वो अपनी समझ पर विचार करें”—शाह का तंज
चर्चा पर सवाल उठाने वालों को शाह ने हल्के सटायर में जवाब दिया— “जिन्हें नहीं समझ आ रहा कि वंदे मातरम पर चर्चा क्यों हो रही है, वे अपनी समझ को रिफ्रेश कर लें।”
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में यह गीत उत्साह और बलिदान का सबसे बड़ा प्रतीक बना।
1875 की रचना जिसने पैदा किया एक आंदोलन
सदन में बताया गया कि 7 नवंबर 1875 को बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की रचना पहली बार सामने आई। शुरुआत में यह साहित्यिक मास्टरपीस माना गया, लेकिन समय के साथ यह आजादी की पहचान बन गया।
शाह ने कहा—“वंदे मातरम् ने युवाओं को प्रेरित किया, शहीदों को बलिदान के लिए मंत्र दिया, और देश को जागरूक किया।”

“2047 में भी इसकी प्रासंगिकता उतनी ही मजबूत रहेगी”
भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
अमित शाह का दावा—“तब भी वंदे मातरम उतना ही प्रासंगिक और प्रेरक रहेगा जितना आजादी के समय था।”
“बंगाल चुनाव से मत जोड़िए”—राजनीति पर ब्रेक
हालांकि कई लोग इसे बंगाल चुनाव से जोड़ रहे हैं, लेकिन शाह ने साफ कहा— “वंदे मातरम बंगाल की नहीं, पूरे भारत की धड़कन है।”
उन्होंने कहा कि यह पूरे विश्व में भारत की पहचान है और इसे संकीर्ण राजनीतिक विषय बनाना अनुचित होगा।
PM मोदी ने भी लोकसभा में की थी चर्चा की शुरुआत
एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा था कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संघर्ष की पवित्र भावना का प्रतीक है।
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